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महाराष्ट्र: निकाय चुनाव से पहले महायुति में घमासान, शिकायतों व आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी

02 December 2025
महाराष्ट्र: निकाय चुनाव से पहले महायुति में घमासान, शिकायतों व आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी
मुख्य बातें:
निकाय चुनाव से पहले महायुति में घमासान, शिकायतों व आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी

मुंबई: महाराष्ट्र में 2 दिसंबर को होने वाले स्थानीय निकाय चुनाव के पहले चरण की तैयारियां शुरू हो गई हैं. इस बीच सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन – (भारतीय जनता पार्टी, एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी) के बीच गहरी होती दरारें स्पष्ट दिखने लगी हैं.

रिपोर्ट के अनुसार, सीट बंटवारे और कार्यकर्ताओं की खरीद-फरोख्त को लेकर जो मामूली मतभेद शुरू हुए थे, वे अब बड़े पैमाने पर सार्वजनिक विवादों, बहिष्कार और वोट खरीदने के आरोपों में बदल गए हैं. कई लोग अब गठबंधन की स्थिरता, खासकर शिवसेना को लेकर चिंतित नज़र आ रहे हैं.

मालूम हो कि यह स्थानीय निकाय चुनाव सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के लिए नगर पालिका परिषदों और नगर पंचायतों से कहीं आगे तक महत्वपूर्ण समझे जाते हैं. जैसा कि यह आम है कि स्थानीय निकाय चुनावों में महायुति में शामिल दल राज्य की कई प्रमुख सीटों पर एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं.

लेकिन, ‘वैचारिक एकता’ के आश्वासनों के बावजूद अंदरूनी कलह चुनावी महत्वाकांक्षाओं से प्रेरित दिख रही है, खासकर उन प्रमुख शहरी और ग्रामीण परिषदों में जहां शिवसेना की मज़बूत पकड़ है.

शिवसेना और भाजपा नेताओं के बीच खुलकर तीखे हमले

पिछले हफ़्ते शिवसेना के गढ़- ठाणे, कल्याण-डोंबिवली और पालघर क्षेत्र में शिवसेना और भाजपा नेताओं के बीच खुलकर तीखे हमले देखे गए हैं.

हालांकि, मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और उपमुख्यमंत्री शिंदे ने इस पर असहज चुप्पी साध रखी है, लेकिन नवंबर के मध्य में दोनों के बीच दरार सबसे पहले तब देखी गई जब शिंदे की शिवसेना ने भाजपा पर अपने ज़मीनी कार्यकर्ताओं और पूर्व पार्षदों को खासकर कल्याण-डोंबिवली जैसे शिवसेना के गढ़ों में आक्रामक तरीके से अपने पाले में करने का आरोप लगाया.

यह शिंदे की पार्टी के लिए नाक की बात बन गई, क्योंकि कल्याण-डोंबिवली एक संसदीय क्षेत्र भी है जहां से शिंदे के बेटे श्रीकांत 2014 से सांसद हैं.

एक समझौता और उसका पतन

18 नवंबर को भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रवींद्र चव्हाण ने शिवसेना के तीन पूर्व पार्षदों को पार्टी में शामिल कर लिया, जिसके बाद शिंदे ने मुख्यमंत्री फडणवीस के साथ एक तत्काल बैठक बुलाई. बताया गया है कि दोनों ने ‘खरीद-फरोख्त में शामिल न होने के समझौते’ पर सहमति जताई, जिसमें शिंदे ने सार्वजनिक रूप से कहा कि सद्भाव बनाए रखने के लिए कोई भी पार्टी एक-दूसरे के कार्यकर्ताओं को पार्टी में शामिल नहीं करेगी.

हालांकि, नुकसान इससे पहले ही हो चुका था: शिवसेना के मंत्रियों ने उसी दिन राज्य मंत्रिमंडल की बैठक का बहिष्कार किया और ठाणे जिले में भाजपा की ‘विभाजनकारी राजनीति’ और ‘आक्रामक प्रचार’ का विरोध किया. एक मंत्री ने आरोप लगाया कि भाजपा धन आवंटन और सीटों के बंटवारे में शिंदे गुट के साथ ‘सौतेला’ व्यवहार कर रही है.

फडणवीस और शिंदे, दोनों ने जिस समझौते का दावा किया था, उससे भी विधायकों की खरीद-फरोख्त नहीं रुकी.

27 नवंबर तक भाजपा ने शिंदे गुट के तीन और नेताओं- आनंद ढोके, शिल्पारानी वाडकर और रूपसिंह ढाल – को अपने पाले में शामिल कर लिया, जो खुद चव्हाण की निगरानी में हुआ.

इस कदम ने गठबंधन में और तनाव पैदा कर दिया, जिसके बाद शिंदे को यह कहना पड़ा कि महायुति का गठबंधन ‘पुराना, मज़बूत और स्थायी’ है, न कि ‘सत्ता या परिस्थितिजन्य ज़रूरतों’ पर आधारित.

विपक्ष का तंज

इस बीच शिवसेना (यूबीटी) के उद्धव ठाकरे समेत विपक्षी नेताओं ने इस मौके पर भाजपा द्वारा अपने सहयोगियों के साथ ‘यूज़ एंड थ्रो’ (इस्तेमाल करो और फेंक दो) जैसा बर्ताव करने के लिए निशाने पर लिया.

एनसीपी (श.प) नेता शरद पवार ने कहा कि महायुति को अब शिंदे की ‘ज़रूरत’ नहीं है और उपमुख्यमंत्री को इस्तीफ़ा दे देना चाहिए.

हालांकि, शिवसेना (शिंदे) में हो रही यह खींचतान एकतरफ़ा नहीं है. शिवसेना (शिंदे) भी भाजपा कार्यकर्ताओं को पार्टी में शामिल करने में जुटी हुई है.

शिवसेना (शिंदे) के सूत्रों का दावा है कि यह अंदरूनी कलह तब से चल रही है जब से शिंदे, जो पिछले कार्यकाल में मुख्यमंत्री थे, को इस सरकार में फडणवीस के लिए जगह बनानी पड़ी थी.

एक वरिष्ठ शिवसेना नेता ने द वायर को बताया कि बंद दरवाजों के पीछे शुरू हुई यह लड़ाई अब खुलकर सामने आ गई है.

परोक्ष आरोप

इसी कड़ी में 19 नवंबर को उपमुख्यमंत्री शिंदे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिलने दिल्ली पहुंचे, जहां उन्होंने कथित तौर पर खरीद-फरोख्त में चव्हाण की भूमिका पर ‘नाराजगी’ जताई और सहयोगियों के बीच सार्वजनिक आलोचना से बचने के लिए संयम बरतने की मांग की. बाद में शिंदे ने इस मुलाकात को ज़्यादा तवज्जो नहीं दी और ज़ोर देकर कहा कि वह ‘शिकायत’ करने वालों में से नहीं हैं और मनमुटाव की बात ‘मीडिया की उपज’ है.

ये विवाद और तब भड़क गया जब 22 नवंबर को शिंदे ने दहानु में एक रैली के दौरान भाजपा पर तीखा प्रहार किया और चेतावनी दी कि ‘अहंकार के कारण रावण का पतन हुआ था’ और ‘रावण की लंका जलेगी.’

यह भाजपा की ‘विस्तारवादी रणनीति’ पर एक स्पष्ट प्रहार था, जिसके बाद फडणवीस ने शिंदे या उनकी पार्टी का नाम लिए बिना इसका जवाब दिया. मुख्यमंत्री ने कहा, ‘कोई कह सकता है कि वे आपकी लंका जला देंगे. लेकिन हम लंका में नहीं रहते. हम भगवान राम के अनुयायी हैं. रावण भगवान राम का भाई नहीं हो सकता. तो चुनाव के दौरान ऐसी भाषा का इस्तेमाल क्यों करें.’

दोनों दलों ने एक-दूसरे पर ज़मीनी स्तर पर चल रहे अभियान का समर्थन न करने का आरोप लगाया है.

बदलापुर में भाजपा ने शिंदे की शिवसेना पर ‘घोर परिवारवाद’ का आरोप लगाया, क्योंकि शिवसेना ने 49 सीटों वाली नगर परिषद के लिए प्रभावशाली वामन म्हात्रे परिवार के छह सदस्यों को उम्मीदवार बनाया था.

वहीं, हिंगोली में भाजपा विधायक तानाजी मुत्कुले ने शिंदे सेना के विधायक संतोष बांगर पर मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए ‘धन-बल’ का इस्तेमाल करने का आरोप लगाते हुए दावा किया कि बांगर ने 2022 में उद्धव ठाकरे के खेमे से अलग होने के लिए 50 करोड़ रुपये लिए थे.

सबसे नाटकीय घटनाक्रम 27 नवंबर को मालवण-कंकावली में देखने को मिला, जहां भाजपा मंत्री नारायण राणे के बेटे और शिवसेना विधायक नीलेश राणे, स्थानीय भाजपा नेता विजय केनवडेकर के घर में घुस गए और कथित तौर पर 25,000 रुपये प्रति वोट के हिसाब से वोट खरीदने के लिए नकदी से भरे बैग ज़ब्त कर लिए.

राणे ने दावा किया कि यह पैसा सीधे चव्हाण से आया था. भाजपा ने इसे हारने वाली पार्टी का बेतुका दावा बताकर खारिज कर दिया है.

इसी तरह, जलगांव में भाजपा सांसद और केंद्रीय मंत्री रक्षा खडसे ने शिवसेना कार्यकर्ताओं पर मुक्ताईनगर निर्वाचन क्षेत्र के निवासियों को ‘धमकाने’ का आरोप लगाया. यह क्षेत्र भाजपा का पारंपरिक गढ़ रहा है और अब शिवसेना के पास है.

इस अफरातफरी के बीच शीर्ष नेता केवल लीपापोती करने वाले बयान देते नजर आ रहे हैं. श्रीकांत शिंदे ने कल्याण-डोंबिवली में ‘संयुक्त मोर्चे’ की वकालत करते हुए ‘दोस्ताना मुकाबले’ को स्वीकार किया. हालांकि, उन्होंने सहयोगियों से एक-दूसरे के खिलाफ ‘राजनीतिक ताकत’ आजमाने से बचने का भी आग्रह किया है.

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