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बांग्लादेश: 2024 के विरोध प्रदर्शन के दौरान हुई मौतों के मामले में शेख़ हसीना को सज़ा-ए-मौत

02 December 2025
बांग्लादेश:  2024 के विरोध प्रदर्शन के दौरान हुई मौतों के मामले में शेख़ हसीना को सज़ा-ए-मौत
मुख्य बातें:
बांग्लादेश के एक अपराध न्यायाधिकरण ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना को पिछले साल जुलाई में हुए जनविद्रोह के दौरान ‘मानवता के ख़िलाफ़ अपराध’ करने का दोषी ठहराते हुए मौत की सज़ा सुनाई है. बांग्लादेश में हुए तख़्तापलट के बाद हसीना अगस्त 2024 से भारत में रह रही हैं.

नई दिल्ली: बांग्लादेश के तीन-सदस्यीय विशेष अपराध न्यायाधिकरण ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना को पिछले साल जुलाई में हुए जनविद्रोह के दौरान ‘मानवता के खिलाफ अपराध’ करने का दोषी ठहराते हुए मौत की सज़ा सुनाई है.

ज्ञात हो कि इसी आंदोलन के बाद अवामी लीग सरकार का पतन हुआ था, और शेख हसीना देश छोड़ने को मजबूर हुई थी. 78 वर्षीय हसीना पिछले साल अगस्त से भारत में रह रही हैं, और बांग्लादेश में उन्हें कई आरोपों में दोषी पाया गया है.

फैसला सुनाते हुए न्यायाधीश ने कहा, ‘इन आरोपों के लिए हमने एक ही सज़ा तय की है.. सज़ा-ए-मौत.’ फैसला आते ही अदालत में तालियों और जयकारों की आवाज़ गूंजने लगी.

बता दें कि यह मामला जुलाई 2024 के उन विरोध प्रदर्शनों से जुड़ा है, जिनके बाद 5 अगस्त को हसीना की अवामी लीग सरकार गिर गई थी. यह जुलाई के प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसा से जुड़े मामलों पर पुनर्गठित ट्रिब्यूनल का पहला फैसला है.

अदालत ने दो मुख्य आरोपियों की संपत्तियां को जब्त करने का भी आदेश दिया है. यह फैसला ढाका स्थित इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल-1 के तीन-सदस्यीय बेंच ने सुनाया. नाम भले अंतरराष्ट्रीय हो, लेकिन यह एक घरेलू बांग्लादेशी अदालत है.

जस्टिस गुलाम मुर्तुज़ा मोजुमदार की अध्यक्षता में बेंच ने 453 पन्नों के फैसले के चुनिंदा हिस्से को खुले अदालत में पढ़ा, जिनका टीवी पर सीधा प्रसारण दिखाया गया.

इस ट्रिब्यूनल को साल 2009 में हसीना सरकार ने 1971 के मुक्ति संग्राम से जुड़े मामलों की सुनवाई के लिए बनाया था और तब से यह 55 मामलों में फैसले दे चुका है. आवामी लीग की सरकार के पतन के बाद, हसीना के 15 साल के शासनकाल के दौरान हुई कथित हिंसा विशेषकर जुलाई 2024 की हत्याओं के मामले को देखने के लिए इस ट्रिब्यूनल को दोबारा से गठित किया गया.

फैसला आने से पहले ढाका में ट्रिब्यूनल परिसर के अंदर और आसपास कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई. 

हसीना, पूर्व गृह मंत्री असदुज़्ज़मान खान और पूर्व पुलिस महानिरीक्षक चौधरी अब्दुल्लाह अल-मामून पर हत्या, हत्या के प्रयास, यातना और अन्य अमानवीय कृत्यों सहित पांच आरोप लगाए गए थे. अभियोजकों ने इन पर प्रदर्शनकारियों को दबाने के लिए घातक हथियारों, ड्रोन और हेलीकॉप्टरों के इस्तेमाल की अनुमति देने या आदेश जारी करने के भी आरोप लगाए हैं.

आरोपपत्र में बेगम रुकैया विश्वविद्यालय के छात्र अबू सय्यद की हत्या, ढाका के चंखारपुल में छह निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी और अशुलिया में पांच लोगों की जलकर मौत की घटनाएं शामिल हैं. अभियोजन पक्ष का कहना है कि कानून प्रवर्तन एजेंसियों और अवामी लीग समर्थित सशस्त्र समूहों ने देश के शीर्ष नेतृत्व के निर्देश पर कार्रवाई की थी. 

हसीना और असदुज़्ज़मान भारत में रह रहे हैं और ट्रिब्यूनल के समन के बावजूद पेश नहीं हुए. तीन आरोपियों में से केवल मामून ही न्यायिक हिरासत में है. उसने आरोप स्वीकार किए और सरकारी गवाह बन कर अदालत में कहा कि घातक बल (lethal force) का इस्तेमाल करने का ‘सीधा आदेश हसीना ने दिया था.’

जांचकर्ताओं के मुताबिक़, जुलाई-अगस्त 2024 में कम से कम 1,500 नागरिक और छात्र मारे गए और 30,000 घायल हुए थे. अभियोजन पक्ष ने अधिकतम सज़ा और पीड़ित परिवारों को क्षतिपूर्ति के लिए आरोपियों की संपत्तियों की जब्ती की मांग की. राज्य द्वारा नियुक्त बचाव पक्ष के वकीलों ने दलील दी कि आरोप साबित नहीं हुए हैं और उन्होंने आरोपियों को बरी करने की मांग की.

उल्लेखनीय है कि मोहम्मद यूनुस की कार्यवाहक सरकार द्वारा ट्रिब्यूनल को पुनर्गठित किए जाने के बाद हसीना के खिलाफ पहला मामला 17 अक्टूबर 2024 को दाखिल हुआ था. औपचारिक आरोप 1 जून को लगाए गए थे और 10 जुलाई को आरोप तय किए गए. 4 अगस्त को पहले गवाह के बयान के साथ सुनवाई शुरू हुई. बाद में कुल 54 गवाहों ने गवाही दी.

अंतिम बहस 23 अक्टूबर को पूरी हुई, उसके बाद निर्णय के लिए 17 नवंबर की तारीख तय की गई.

ट्रिब्यूनल कानून के अनुसार, दोषी व्यक्ति को अपील दायर करने से पहले आत्मसमर्पण करना अनिवार्य है. अभियोजकों ने कहा है कि फरार आरोपी अपील का लाभ तभी उठा सकते हैं जब वे स्वयं अदालत में उपस्थित हों या गिरफ्तार किए जाएं.

बांग्लादेश पुलिस ने पहले इंटरपोल से हसीना के खिलाफ रेड नोटिस जारी करने का अनुरोध किया था. हालांकि जुलाई 2024 की कार्रवाई से जुड़े 28 लोगों के खिलाफ रेड नोटिस की मांग में से अब तक इंटरपोल ने केवल चार जारी किए हैं. कई अनुरोध इंटरपोल की आंतरिक राजनीतिक या मानवाधिकार समीक्षा में अटके हुए बताए गए हैं.

अभियोजकों ने कहा कि यदि हसीना दोषी ठहराई जाती हैं, तब वे एक ‘कन्विक्शन वारंट’ जारी कराने की भी मांग करेंगे ताकि रेड नोटिस की प्रक्रिया आगे बढ़ाई जा सके. 

हालांकि, पहले भेजे गए रेड नोटिस के अनुरोधों पर कार्रवाई बहुत धीमी रही है.

बांग्लादेशी अख़बार द बिज़नेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, जुलाई 2024 की कार्रवाई से जुड़े 28 लोगों के खिलाफ पुलिस ने रेड नोटिस की मांग की थी, लेकिन इंटरपोल ने अब तक सिर्फ चार नोटिस ही जारी किए हैं. बाकी अनुरोधों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है.

इस साल जुलाई में ट्रिब्यूनल ने न्यायालय की अवमानना मामले में हसीना को छह महीने के कारावास की सज़ा भी सुनाई थी. यह कार्रवाई उस फोन बातचीत से जुड़ी थी जिसमें अभियोजन पक्ष के अनुसार उन्होंने न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश की थी.

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